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मनसंद मारितंदे , मनुमुनि गुम्मटदेव , मरुलशंकर देव , मल्लिकार्जुन पंडिताराध्य , मळुबाविय सोमण्णा , मादार चेन्नय्या , मादार धूळय्या , मारेश्वरोजेय , मेरेमिण्डय्या , मेदर केतय्या वचन

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मनसंद मारितंदे


इष्टलिंग और प्राण लिंग को
अलग-अलग रूप में देख सकते क्या ?
वृक्ष बीज में छिपकर
बीज वृक्ष को निगलने के जैसे
इष्ट प्राण को जुड़ा रहना चाहिए।
पानी के मोती होने के जैसे, दोनों का स्वरूप है।
मन लीन हुआ मारेश्वरा।। / 1907
पत्थर कांति से रत्न होने जैसे
पानी का सार सूखकर नमक होने जैसे
पानी वायु के संग से प्रबल होने जैसे
पूर्वाश्रम को मिटाकर पुनः जनम लेने के बाद
अपने बंधु भाव में मिले तो
वह गुण आचार से बाहर है।
माता, पिता भाई, बंधु कहकर
मन का लगाव होने से
आचार दृष्टि से भ्रष्ट, विचार के लिये दूर और
परमार्थ के लिए अयोग्य है।
इन सबको मिटाकर स्वयं में स्थित होने से
मन लीन हुआ मारेश्वरा। / 1908
कायारूप में रहने तक शिवभक्त को कायक ही कैलास है।
जिसका कायक नहीं उसका ज्ञान व्यर्थ है।
रसोइया के घर के घड़े की माँड मत चाहो।
कोई दानी है तो उसके यहाँ बार-बार मत जाओ।
ऐसे लोगों के चरण देखने से पहले ही आप ऐक्य हुए न!
मन लीन हुआ मारेश्वरा। / 1909
ख्याति लाभ की पूजा, धन को नष्ट करने के लिए कारण बनी।
वैराग्य से विरक्ति पैदा होने से
स्त्री, धन, भूमि के मोह के लिए कारण बना।
वाद-प्रतिवाद मात्सर्य हार-जीत का कारण बना।
इन सारी बातों को जानकर है'' और 'नहीं''।
की जिंज्ञासा में मन लीन हुआ मारेश्वरा। / 1910
विष को छिपाये हुए साँप जैसे
फल को आश्रय देने वाले पेड़ जैसे
निधि को छिपायी हुई धरती जैसे ।
गंध को आंतर्य में छिपाये चंदन जैसे
इनकी रीति किस तरह थिर है?
संग दुःसंग जो जान गया वह
स्थिर हुआ, मन लीन हुआ मारेश्वरा। / 1911
गाय की हत्या करके, गोदान करें तो
गाय की हत्या गाय के दान से सही होगा क्या?
आचार और अनाचार में प्रति प्रश्न है क्या?
नियम निष्ठा में भंग हो तो
भ्रष्ट होने से पहले ही, मन लीन हुआ मारेश्वरा। / 1912
हम भक्त हैं, कहते हुए नित्य नेम करने के बहाने
घर-घर के द्वार पर जाने से क्या मिलेगा?
यह शिव भक्तों के लिए शोभा देगी क्या?
इस प्रकार व्रत नेम बेचते हुए।
पेट पालने वाले कुटिल जनों से डरने से
पहले ही, मन लीन हुआ मारेश्वरा।। / 1913
पेड़ के जड़ों को पानी डालने से पनपेगी
इसके बदले उसकी कोंपलें जैसी छोटी डालियों को पानी डालेंगे क्या?
जानकर पूजा करने से मन का पाश मिटेगा।
जानकर अर्पण करें तो लिंग तृप्त होगा
अपने को जानने से सारे जीव को मुक्ति मिलेगी।
अपना सुख दुःख दूसरों का सुख दुःख है,
अन्य भेद नहीं, मन लीन हुआ मारेश्वरा।। / 1914
राजा की भक्ति तामस गुण से नष्ट हुई।
पंडित की युक्ति खंडन के बिना स्थगित हुई।
सुसंग करने वाले का वैराग्य दुःसंग से बिगड़ा
पतंग जैसे होने से पहले ही तुम अपने को जानो
अपने को जानो तो तुम्हारे बराबर कोई नहीं
मन लीन हुआ, मारेश्वरा। / 1915
वाचालता की चपलता से बोलने से क्या हुआ।
त्रिविध का लोभ छोड़े बिना ?
क्रोध को जड़ से उखाड़ फेंके बिना ?
तीनों आशाओं के बंधन में बातें फँसकर
क्रोध के पाशा में बंधित होने से
फिर भाषा-नीति का अर्थ ही क्या?
बकरे के गले के स्तन के दूध की आशा करने से
वहाँ कौन-सा सुख मिलेगा?
इस गुण का आशापाश चीर सके तो
मन लीन हुआ, मारेश्वरा। / 1916

References

[1] Vachanas selected from the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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