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उळियुमेश्वर चिक्कण्णा , एच्चरिके कायकद मुक्तनाथय्या , एलेगार कामण्णा , एकांत रामितंदे , एलेश्वर केतय्या , ओक्कलिग मुद्दण्णा , कम्बद मारितंदे , कन्नडि कायकद अम्मिदेवय्या , कन्नद मारितंदे , करुळ केतय्या , कलकेतस्या , किन्नरी ब्रह्मय्या , कीलारद भीमण्णा , कूगिन मारय्या , कोल शांतय्या , गजेश मसणय्या , गाउदि माचण्या , गुप्त मंचण्णा , गुरुपुरद मल्लय्या , गोरक्ष , घट्टिवाळय्या वचन |
चयनित वचन |
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उळियुमेश्वर चिक्कण्णाअस्थि, त्वचा, मांस, रक्त खण्ड का झोला; अप्रयोजक इस शरीर का मैं कैसे पालन करूँ? नि:सार संसार इसे ढोकर दुःखी होना मुझसे कब छूटेगा? इसके संशय से मैं कब दूर हो पाऊँगा? ठोकर खाकर घड़ा पानी में फूटने सदृश मेरा यह शरीर फूटकर आप में कब समाहित होगा बताओ, उळियुमेश्वरा? / 1591 |
यदि मैं कहूँ कि मैं भक्त हूँ, मैं शरण हूँ, लिंग समरसी हूँ। तो लिंग हँसेगा नहीं क्या? पंचेन्द्रिय नहीं हँसेंगे क्या? अरिषड् वर्ग नहीं हँसेंगे क्या? मेरे तन के भीतर स्थित सत्व, रज, तमो गुण न हँसेंगे क्या? कहो उळियुमेश्वरा? / 1592 |
अपने मन को पलंग बनाकर तन को उसपर ओढाऊँगा, आओ। मेरे अंतरंग में रहने आओ मेरे बहिरंग में रहने आओ हे मेरे शिवलिंग देव आओ हे मेरे भक्तवत्सल आओ ‘ओम नमः शिवाय' कह बुलाता हूँ हे उळियुमेश्वरा लिंग, आओ। / 1593 |
नदी का पानी लाकर साग सब्जी खाकर लिंग आवास होकर रहना चाहिए। तालाब के पानी में नहाकर साफ कपड़ा पहनकर लिंग आवास होकर रहना चाहिए। ज्ञान मिटाकर दूसरों के प्रति इच्छा पैदा कर मुझे जलाएँगे क्या उळियुमेश्वरा? / 1594 |
वाराणसी, अविमुक्त क्षेत्र यहीं पर है, हिमवत् केदार, विरूपाक्ष यहीं पर है, गोकर्ण, सेतु रामेश्वर यहीं पर है, श्रीशैल का मल्लिनाथ यहीं पर है, सकल लोक पुण्यक्षेत्र यहीं पर है, सकल लिंग उळियुमेश्वरा अपने में है। / 1595 |
एच्चरिके कायकद मुक्तनाथय्याअंग विकार बस करो, उठो बहुरूपी प्रकृति को भूलो, उठो अपनी भक्ति-मुक्ति के लिंग संग को याद करो, उठो आपके गुरु की आज्ञा को अपने विराग ज्ञान विवेक को समझो उठो घोषणा करूंगा, क्षणमात्र में क्या होगा बता न सकता? शुद्धसिद्धप्रसिद्ध प्रसन्न कुरंगेश्वर लिंग से मिलना है तो, उठो। / 1596 |
चार पहरों में से एक पहर भूख, प्यास आदि विषयों में बीता था। और एक पहर निद्रा, स्वप्न, चिंता आदि नाना अवस्थाओं में बीता था एक और पहर स्त्री के स्तन, अधर चुम्बन आदि बहुविध अंग विकारों में नष्ट हुआ था और एक पहर बचा है : आपके आगमन का मार्ग समझकर आगे आनेवाले लाभ-हानि को समझकर नित्य व्रत के विस्तार पर आपका शिवार्चन, पूजा, प्रणवस्वरूपी प्रमथ समूह भाव की प्रौढ़ता विरक्ति, सद्भक्ति की मुक्ति ऐसे कार्यों में चूकिये मत अरुणोदय के पहले खग विहग आदि पशु मृग, नर कुल की ध्वनि निकलने से पूर्व ही शुद्धसिद्धप्रसिद्ध प्रसन्न कुरंगेश्वर लिंग से मिल जाना है तो ध्यानारूढ़ रहिए। / 1597 |
एलेगार कामण्णापान के पत्तों को छ: महीने चाहिए। व्रतभ्रष्ट होने में क्षणमात्र, भ्रष्ट कहकर उससे कोई मिलते नहीं। पान का पत्ता पुराना होने पर भी शिवार्पित। व्रतभ्रष्ट होने पर उसी क्षण मृत्यु होगी, आतुरेश्वर लिंग। / 1598 |
एकांत रामितंदेअशन, विषयवासना सभी विषयों में झूठा होकर चुगलीखोरी में थककर इस प्रकार सेवा करवाना सदगुरु को योग्य नहीं तेल-जल के भेद की तरह मणि के भीतर के धागे की तरह। अपने अंग का केंचुल निकालकर खड़े सांप की तरह गुरुस्थल सम्बन्ध होता है। मेरे पिता चेन्नरामेश्वर लिंग को समझ सके तो। / 1599 |
काया अनेक उनकी आत्मा को एक कहना कैसी बात है? आग से बनी रोशनी जला पाएगी क्या आग के बिना ? एक-एक घट में अपने-अपने पथ पर भुगतते हुए वह दूसरे में मिलन सुख पाता है क्या? यह गुण मेरे गुरु चेन्नराम का ज्ञान पाने से मिलेगा। / 1600 |
[1] Vachanas selected from the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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