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हाविनहाळ कल्लय्या , हँजिन काळगद दासय्या , हेंडद (मद्यसार/शराबि) मारय्या , होड़ेहुल्ल बंकण्णा वचन

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हाविनहाळ कल्लय्या


उन-उन दिनों का संसार,
उन-उन दिनों में ही व्यय करता है।
कब, मैं आपका स्मरण करूं हे देव!
कब, मैं आपकी पूजा करूं?
समचित्त से, आपका स्मरण कर सकें तो
कल से, आज ही बेहतर है, हे महालिंग कल्लेश्वदेव! / 2182
अधिक चाहना पाप है, उससे बढ़कर कोई पाप नहीं देखो!
परिणाम ही परमानंद है।
दूसरा कोई परलोक नहीं है, देखो!
इह-पर की आशा न करना ही शिवयोग है,
महालिंग कल्लेश्वर जानता है, सिद्धराम की रीति को! / 2183
खिला फूल क्या सुगंध नहीं फैलाएगा?
भरे सागर में, क्या झाग लहरों से खेलेगा नहीं?
आकाश को छूनेवाला, क्या लंबी लकड़ी पकड़ेगा?
परम परिणामी क्या कर्मों का निराकरण नहीं कर सकता ?
बताओ, हे महालिंग कल्लेश्वर! / 2184
ज्ञान ही गुरु है, सदाचार ही शिष्य, ज्ञान ही इष्टलिंग है;
परिणाम ही तप है, समता ही योग का फल है देखो!
तैरना न जानते हुए, वेष धारण करे तो, इतना न जानकर
बाल नोंचे तो,
महालिंग कल्लेश्वर देव हँसेंगे ही! / 2185
अशन की तृप्ति, व व्यसन जब तक है,
आपका स्मरण करना झूठ ही है;
आपका पूजना भी झूठ ही है।
मेरी भूख के लिए, आप ही आहार है तो,
मेरा, आपका स्मरण करना सत्य है,
देखो, महालिंग कल्लेश्वर देव । / 2186
कोई व्रत-नियम नहीं करेगा, कोई कर्म नहीं अपनायेगा,
कोई शील नहीं करेगा, कोई तप नहीं करेगा,
किसी झंझट में नहीं पड़ेगा, केवलात्मक है।
आकार निराकार होना सहज है न!
महालिंग कल्लेश्वर, आपके शरण का। / 2187
कोयल रखता नहीं क्या अंडा, कौओं के अंडों के बीच में ?
न पालता है क्या अपने बच्चे को, मन बुद्धि से ?
रखने पर क्या हे देव, पिंड को लाकर
मानवयोनि में पैदा होने पर भी, क्या?
लिंगशरण नर योनि में पैदा हुआ होता है क्या? नहीं।
पक्षी के पेट से, अश्वत्थ वृक्ष पैदा नहीं होता है क्या?
इसप्रकार, हे महालिंग कल्लेश्वर, कोयल क्या कौए का शिशु है? / 2188
जल की शीतलता को कमल नहीं, तो
क्या बाहर का हूँठ जानेगा ?
पुष्प की सुगंध को, भौंरा नहीं तो,
क्या बाहर की मक्खी जानेगी ?
क्षीर का स्वाद, हंस नहीं तो,
क्या, कीचड़ का बगुला जानेगा?
आम का स्वाद, शुक जानता है, नहीं तो,
बाहर की मुरगी क्या जानेगी?
खाने का स्वाद, जीभ नहीं तो,
क्या मिलानेवाला हाथ जानेगा?
मिलन का सुख, यौवना नहीं तो,
क्या बालिका जानेगी?
चन्द्र-सूर्य का अंतरांतर, खेचर नहीं तो,
क्या गगन में उड़नेवाले गिद्ध जानते हैं?
हे, महालिंग कल्लेश्वर!
आपके नित्य निजैक्यों का स्वरूप,
महानुभाव ही जानते हैं; नहीं तो,
जगत् के जड़जीवी, मानव क्या जाने ? / 2189
बायें हाथ में, लोहे की बेड़ी डालकर,
दायें हाथ को काटोगे तो, कौन दु:खेगा बोलो ?
शरीर और प्राण एक ही हैं तो, कौन तड़पेगा बोलो ?
लिंग जंगम की आराधना करने पर, जंगम निंदित हुआ तो दुःखी हुआ।
हे, महालिंग कल्लेश्वर! / 2190
जहाँ भी देखें तो, वहाँ आप ही को देखता हूँ,
जागते ही आप ही को देखता हूँ,
नींद में भी आप ही को देखता हूँ,
रात-दिन आप ही का ध्यान करता हूँ।
हे, महालिंग कल्लेश्वर! / 2191

References

[1] Vachanas selected from the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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